अस्पताल में आपातकाल विभाग के बाहर पड़े बैंच पर ही 25 साल के युवक की मौत हो गई।

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23 नवंबर ​
​(​गुरदेव  भाम) मोगा

दुर्घटना में घायलों को कुछ ही देर में चिकित्सा सुविधा देने और अस्पताल पहुंचाने का दावा करने वाली एंबुलेंस 108 के यह दावे शनिवार को उस समय खोखले नजर आए जब इसका इंतजार करते करते एक मासूम की मौत हो गई। युवक के गुर्दे फेल होने और कमजोरी के कारण डाक्टर उसका डायलसिस नहीं कर पा रहे थे। डॉक्टरों की ओर से मरीज को फरीदकोट रेफर करने पर परिजनों ने 108 एंबुलेंस पर फोन किया। वहां से कुछ ही देर में पहुंचने का कहकर फोन काट दिया गया। करीब डेढ़ घटे तक अस्पताल में आपातकाल विभाग के बाहर पड़े बैंच पर ही 25 साल के युवक की मौत हो गई। इस दौरान धीरे धीरे मरते अपने बच्चे को बचा पाने में असमर्थ विधवा मां और दादा का रो रोकर बुरा हाल हो रहा था। शहरकी अलीपुर बस्ती निवासी विधवा दर्शना रानी ने बताया कि उसका 25 वर्षीय बेटा गुलशन कुमार ढ़ाई महीने से गुर्दे फेल होने के चलते बिस्तर पर पड़ा था। उसकी हालत दिन प्रतिदिन बिगड़ती जा रही थी। इसके चलते उसे शनिवार की दोपहर करीब 12 बजे सरकारी अस्पताल के आपातकाल विभाग में लाया गया। यहां अस्पताल के एमडी मेडिसन डाॅ. रामिंद्र शर्मा ने उसका चेकअप करने के बाद उसे फरीदकोट के गुरु गोबिंद सिंह मेडिकल कालेज के लिए रेफर कर दिया। डॉक्टर ने करीब 12.15 बजे पंजाब हेल्थ सिस्टम कार्पोरेशन का रेफर कार्ड 8662 बनाकर उसकी मां और दादा को दे दिया था। इसके बाद मरीज को आपातकाल के बाहर लगे बैंच पर लेटा दिया गया। इसी बीच गुलशन कुमार की माता दर्शना रानी ने 108 एबुलेंस को फोन करके मरीज को फरीदकोट ले जाने के लिए कहा गया। वहां से कुछ देर बाद एबुलेंस आने की बात कही गई, लेकिन एबुलेंस नहीं आई। काफी देर इंतजार करने के बाद वहां मौजूद मक्खू निवासी डॉ. निर्मल सिंह जोकि अपनी पुत्रवधु की डिलिवरी के लिए सरकारी अस्पताल में थे। उन्होंने अपने मोबाइल से 108 एबुलेंस पर फोन करके मरीज की हालत के बारे में बताया और जल्दी आने को कहा। फिर भी एबुलेंस नहीं आई। करीब डेढ़ घंटे इंतजार करने के बाद मरीज की बैंच पर मौत हो गई। हिला ने बताया कि उसके पति की कई साल पहले मौत हो गई थी। दो बेटियां शादीशुदा है। एक बेटा था जिसकी आज मौत हो गई है। बेटे की मौत के बाद बेबस और लाचार दादा कश्मीरी लाल के आंखों से आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे।

मरीज के सभी डायलसिस करवाए मुफ्त^मरीजआर्थिक हालत को देखते हुए हमने जितने भी डायलसिस मोगा सरकारी अस्पताल में हुए थे, वह सारे मुफ्त में करवाए। मरीज का दादा आया था एबुलेंस के लिए। 108 एबुलेंस मौजूद नहीं थी। इसके चलते उन्होंने सरकारी अस्पताल की एबुलेंस भेजने के लिए पता करवाया तो वह खूनदान कैंप में शहर से बाहर गई होने के चलते उपलब्ध नहीं हो सकी। अरविंदपालसिंह गिल, एसएमओ।उनकेपास मरीज करीब 12 बजे डायलसिस करवाने के लिए आया था। मरीज की दोनों टांगें बेहद कमजोर होने के चलते उसका डायलसिस नहीं हो पा रहा था। हमने करीब 45 मिनट तक प्रयास किया कि उसका डायलसिस करने में कामयाब हो सके। ऐसा नहीं होने पर हमने उसे फरीदकोट रेफर कर दिया था। ताकि वहां के डॉक्टर मरीज की गर्दन में विसला डाल देंगे, जिससे मरीज का डायलसिस करना आसान हो जाए। डाॅ.रामिंद्र शर्मा, एमडी मेडिसन।