जिन हाथों मेें स्लेट और बत्ती होना थी, उन मासूमों के हाथों में है भीख का कटोरा

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ग्वालियर 21 दिसंबर [सीएनआई ब्यूरो] भले ही हमारा देश 21 वी सदी की आधुनिक दुनिया में पहुंच गया हो, मगर आज भी इस देश के अंदर कुछ मासूमो का बचपन बनने से पहले ही खत्म होने की कगार पर चलता जा रहा है। जिन हाथो में स्लेट और बत्ती होना चाहिए थी, उन हाथों में आज पेट की भूख ने भीख का कटोरा थमा दिया है । लोग पूछ रहे है कि जब हमारा देश दुनिया में ऊंची उडाने भर रहा है , गरीबों के लिए सैकडों योजनाएं बनाई जा रही है । तो क्या एक योजना इन मासूमो के लिए नहीं बनाई गई है । जिनका बचपन भूखे पेट और होंटो पर रोटी की तड़प ने हाथ में कटोरा लेकर भीख मांगने को मजबूर कर दिया है । ये हालात प्रतिनिधि के कैमरे में कैद भीख मांगते बच्चों के तड़पते भूखे पेट और होंटों की प्यास, बदन पर गर्म कपड़े नहीं, मगर इन मासूम बच्चों में जीने का हौशला आज भी बरकार है । जहां वर्तमान परिवेश में कोई भी व्यक्ति गिरते हुए पारे और शीत लहर में बगैर जूते और कपडों और टोपो के बगैर नहीं रह सकता, मगर यह मासूम ऐसी ठंड में जीने का हौशला भीख मांगकर रख रहे है ।
दरअसल, ये मासूम बच्चे चीनोर रोड़ बस स्टेण्ड़ पर भीख मांग रहे थे, हमारा संवाददाता किसी खबर के कवरेज के लिए उस रास्ते से जा रहा था बस स्टेण्ड़ पर इन दो मासूम बच्चो को भीख मांगते हुए देखा तो रहा नहीं गया । हमारे संवाददाता ने बच्चों के हालत को देखकर बच्चों से पूछा तुम्हारे माता पिता का नाम क्या है। बच्चों ने बताया कि मां का मीराबाई और पिता का नाम रामसिंह है । हम जाति से लोहपीटा है पेट भरने के लिए हम डबरा भीख मांग रहे है । और हमारे माता पिता ग्रामीण क्षेत्रों में, शाम ढलते ही हमारे माता पिता हम लोगों को इसी स्थान से ले लेते है, तब जाकर हमारे पेट की भूख के लिए मांगी हुई भीख से भोजन तैयार होता है ।