नवमीं मुहर्रम को इमाम बाड़ा मलिकटोला में अंजुमन बाबुल इल्म जाकिरया के जेरे साया में एक मजलिस का किया गया आयोजन।

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मऊ 24 अक्टूबर (मोहम्मद अरशद) नवमीं मुहर्रम को इमाम बाड़ा मलिकटोला में अंजुमन बाबुल इल्म जाकिरया के जेरे साया में एक मजलिस का आयोजन किया गया। जिसमें इमाम हुसैन और उनके बहत्तर शहीद साथियों को याद किया गया। मौलाना नसीमुल हसन ने इमाम हुसैन की कुर्बानी देने का मकसद सिर्फ इतना था कि दुनिया में आदमियत बाकी रहे।  इमाम हुसैन ने जुल्म व सितम के विरुद्ध आवाज उठाकर इंसान को यह पैगाम दिया कि दुनिया में अमन चैन रहने के किसी फौज या हथियार की जरुरत नही हो बल्कि कुर्बानी देकर अमन चैन रखा जा सकता है। जैसा कि महात्मा गांधी ने अपनी कुर्बानी देकर इस देश में भाईचारगी व अमन चैन रखा। उसके बाद अजुमंन के सदस्यों ने आग पर चलकर मातम किया। 10वीं मुहर्रम को इमाम हुसैन ने अपने वफादार साथियों के साथ 10वीं मुहर्रम को कर्बला के मैदान में तीन दिन से भूखे व प्यासे रहकर जूल्म व हक के खिलाफ अपनी आवाज बुलन्द की। यह बातें यजीद को नागवार गुजरी और उसके एक -एक करके इमाम हुसैन के साथियों को शहीद कर दिया। नकीबे फत्हे शहे मशरिकैन बने चली,न थे हुसैन तो जैनब हुसैन बनके चली।