बेटियों को चीडिय़ां समझा जाता है, चीडिय़ां आसमान में उड़ारी मारती हैं, फिर बेटियां पर बंधन क्यों?

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-एनजीओ अपने तथा डबवाली जन सहारा सेवा संस्था ने जिला बठिंडा की संगत मंडी में लगाया सेमिनार
-जागरूकता रैली निकाली, बेटियां जिंदाबाद से गूंज उठी संगत मंडी
संगत मंडी (बठिंडा)। बेटियों को चीडिय़ां समझा जाता है। चीडियां खुले आसमान में उड़ारी मारती हैं। फिर भला उन्हीं के सामान समझी जाने वाली बेटियों पर पाबंदी क्यों है? बेटियों का क्या कसूर है? मैं यह सवाल एक साल से बार-बार मंच पर दोहरा रही हूं। किसी के पास है मेरे सवाल का जवाब? 11वीं कक्षा की छात्रा बेअंत कौर के इस सवाल ने सभी को सोचने पर मजबूर कर दिया।
मौका था जिला बठिंडा की संगत मंडी स्थित सिपाही जैला सिंह (वीर चक्र ) सरकारी सीनियर सैकेंडरी स्कूल में शनिवार को डबवाली के एनजीओ अपने तथा डबवाली जन सहारा सेवा संस्था द्वारा कन्या भ्रण हत्या पर आयोजित सेमिनार का। बेटी के बेबाक बोल सुनकर पूरे स्टॉफ तथा आयोजकों के रौंगटे खड़े हो गए। जिला सिरसा में कन्या भ्रूण हत्या रोकने के लिए बनी कमेटी के पूर्व चेयरमैन तथा पूर्व सरपंच रणजीत सिंह सांवतखेड़ा ने बड़े ही सरल शब्दों में जवाब दिया कि इसके लिए समाज की सोच बदलने की जरूरत है। यह कार्य केवल और केवल बेटियां ही कर सकती हैं। बेटियां पढ़ लिखकर खुद के पैरों पर खड़ी होंगी तो समाज खुद अपनी सोच बदल लेगा। फिर चीडियां और बेटियों में असमानता का दौर खत्म हो जाएगा। पूर्व चेयरमै

न ने कहा कि कुदरत के करिशमें के आगे अल्ट्रासाऊंड केंद्र भी फेल हैं। उन्होंने एक घटना का जिक्र करते हुए कहा कि उनके नेतृत्व में बनी एक टीम ने एक व्यक्ति को दो बेटियों के बाद जांच करवाते हुए पकड़ लिया। इस बार भी चिकित्सक ने उसे गर्भ में बेटी होने की रिपोर्ट दी थी। बाप के हाथ में हथकड़ी देखकर बेटियों रोने लगे। अंकल! प्लीज, मेरे पापा को छोड़ दो। टीम को बेटियों पर दया आ गई। बेटियों की खातिर संबंधित व्यक्ति को छोड़ दिया। उसके बेटा हुआ। जबकि वह बेटी की रिपोर्ट प्राप्त करके गर्भपात करवाने चला था। पूर्व सरपंच ने कहा कि कुदरत जो करता है बढिय़ा करता है। लेकिन मुनष्य की घिनौनी सोच ने बेटा-बेटा में असमानता ला खड़ी की है। इस मौके पर डॉ. विवेक करीर ने अपने गीत के जरिए बेटियों का इंकलाब जिंदाबाद किया।

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विद्यालय की अध्यापिका सुमन बांसल ने कहा कि केवल लड़कों से वंश चलता है, समाज को यह विचारधारा बदलनी होगी। भारत का इतिहास उठकर देख लो। कई वंश बेटियों के नाम से जाने जाते हैं। रामायण की बात करें तो माता सीता को जानकी कहा जाता है, चूंकि वे राजा जनक की बेटी थी। भगवान राम की पत्नी होने के कारण उन्हें कोई रामी नहीं कहते। महाभारत की बात करें तो गंधारी ने अपने पति के अंधे होने पर आंखों पर पट्टी बांध ली थी। उसे उसके पति के नाम से पिता के नाम से जाना गया। वे गंधार राज्य की राजकुमारी थीं। द्रोपदी पंचाल राज्य के राजा द्रुपत की बेटी थी, इसलिए उसे द्रोपदी के नाम से जाना गया। जब इतिहास कह रहा है कि बेटियों के नाम से वंश चलता है, तो फिर आज का युग इस बात को क्यों नाकार रहा है?
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कानून बनें हैं, लागू करना जरूरी
विद्यालय के प्रिंसीपल प्रदीप कुमार ने बताया कि एक तरफ वृक्षों को काटा जा रहा है। दूसरी ओर बेटियों को जन्म नहीं दे रहा। अगर यही चलता रहा तो मनुष्य का वजूद मिट जाएगा। हालांकि देश में कानून बने हैं। लेकिन इसे लागू करना हमारा कार्य है।
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बेटियां जिंदाबाद की गूंज
सेमिनार के बाद स्कूली विद्यार्थियों ने संगत मंडी में जागरूकता रैली निकाली। बेटियों ने हाथों में तख्तियां पकड़ी हुई थी। जिला बठिंडा की मंडी बेटियां जिंदाबाद से गूंज उठी। इस अवसर पर एनजीओ अपने के पैटर्न चीफ तथा डबवाली जन सहरा सेवा संस्था के अध्यक्ष आरके नीना ने कहा कि विद्यालय में पढऩे वाले जरूरतमंद बच्चों को गर्म वस्त्र तथा बूट उपलब्ध करवाए जाएंगे। इस अवसर पर एनजीओ अपने के सोमनाथ बांसल (धुनिका वाले), सतपाल रोज़, नरेश चावला, देवराज धरू, कुलवंत सिंह, खुशी मोहम्मद, इंद्र शर्मा, हैप्पी बांसल मौजूद थे।
फोटो : बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ के तहत संगत मंडी में रैली निकालती छात्राएं।

फोटो : बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ के तहत संगत मंडी में रैली निकालती छात्राएं।

 

11वीं कक्षा की छात्रा बेअंत कौर को सम्मानित करते एनजीओ सदस्य।
11वीं कक्षा की छात्रा बेअंत कौर को सम्मानित करते एनजीओ सदस्य।