भगवान श्री कृष्ण ने हनुमान जी को भी श्रीमद्भगवद्गीता का श्रोता बना कर इस ज्ञान को सदा के लिए सुरक्षित कर दिया

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2010

कोटकपूरा 14 दिसंबर (मक्खन सिंह ) एक वर्ष पहले की बात है जब मैंने देश के प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी से प्रभावित होकर श्रीमद्भगवद्गीता का प्रचार करने हेतु इसको बाँटना शुरू किया था तो उन दिनों मुझे पता चला था कि कुछ लोग श्रीमद्भगवद्गीता को ऐसी पुस्तक बता रहे हैं जो बाजार से 30 रूपए में मिल सकती है। लेकिन मैं निरन्तर गीता को समझने में लगा रहा. श्रीमद्भगवद्गीता’ में अठारह अध्याय हैं।सम्पूर्ण महाभारत भी अठारह पर्वों में विभक्त है।कौरव और पाण्डव पक्षों के मध्य हुए युद्ध की अवधि भी अठारह दिन थी। दोनों पक्षों की सेनाओं का सम्मिलित संख्याबल भी अठ्ठारह अक्षौहिणी था। इस युद्ध के प्रमुख सूत्रधार भी अठ्ठारह थे। महाभारत की प्रबन्ध योजना में सम्पूर्ण ग्रन्थ को अठारह पर्वों में विभक्त किया गया है। आम तौर पर समझा जाता है कि भगवान श्री कृष्ण ने श्रीमद्भगवद्गीता युद्धभूमि में मोहग्रस्त अर्जुन के लिए कही थी और उसे कर्तव्य बोध कराया था, लेकिन यह पूरा सच नहीं है कि पाण्डु पुत्र अर्जुन संवेदना, करूणा एवं ममता से भरा हुआ था इसलिए भगवान श्रीकृष्ण ने गीता अर्जुन को सुनाई। क्या आप जानते हैं कि जिस समय भगवान ने गीता का उपदेश दिया तब अर्जुन के अतिरिक्त चार और लोगों ने भी वो उपदेश सुना और वो चार लोग थे
1 हनुमान जी
2 महर्षि वेद व्यास जी के शिष्य तथा धृतराष्ट्र की राजसभा के सम्मानित सदस्य संजय
3 घटोत्कच और अहिलावती के पुत्र तथा भीम के पोते बर्बरीक
4 धृतराष्ट्र
जब भगवान श्री कृष्ण अर्जुन को गीता का उपदेश दे रहे थे उस समय हनुमान जी अर्जुन के रथ पर सवार थे। बर्बरीक घटोत्कच और अहिलावती के पुत्र तथा भीम के पोते थे. जब महाभारत का युद्ध चल रहा था उस दौरान उन्हें भगवान श्री कृष्ण से वरदान प्राप्त था कि कौरवों और पाण्डवों के इस भयंकर युद्ध को देख सकते हैं. संजय भगवान वेद व्यास जी से दिव्य दृष्टि पाकर धृतराष्ट्र को महाभारत का हाल बता रहे थे। जब भगवान गीता का उपदेश दे रहे थे तो उस समय धृतराष्ट्र ने पूरी गीता का व्याख्यान संजय के मुख मण्डल से सुना। भगवान श्री कृष्ण इस बात को जानते थे इसलिए उन्होंने अपनी योगमाया से महाभारत युद्ध के दौरान ऐसा दृश्य बना दिया, भगवान की लीला से उस समय संजय को भी सिर्फ यही दृश्य ही नज़र आया, या इसे आप संजय की विद्धता समझे ,उस समय संजय किसी और दृश्य का वर्णन भी कर सकता था संजय को श्री कृष्ण द्वैपायन व्यास द्वारा दिव्य दृष्टि का वरदान दिया गया था । जिससे महाभारत युद्ध में होने वाली घटनाओं का आँखों देखा हाल बताने में संजय, सक्षम था । श्री कृष्ण का विराट स्वरूप, जो कि केवल अर्जुन को ही दिखाई दे रहा था, संजय ने दिव्य दृष्टि से देख लिया था । अगर आज के संदर्भ में बात करें तो लाइव टेलीकास्ट की शुरुआत यहीं से हुई थी, भगवान श्री कृष्ण चाहते थे कि धृतराष्ट्र को अपने कर्त्तव्य का बोध हो और एक राजा के रूप में वो भारत में होने वाले विनाश को रोक लें इसलिए उन्होंने गीता का उपदेश दिया। लेकिन अज्ञान वश जन्म से अंधे धृतराष्ट्र ने अपनी मन की आँखों पर भी पुत्रमोह और झूठी महत्वांकाक्षा की पट्टी बाँध ली थी. जिन लोगों ने महाभारत पढ़ी है या इस कहानी पर बने टीवी धारावाहिक देखे हैं वो समझ सकते हैं कि धृतराष्ट्र हमेशा भगवान श्री कृष्ण को ही महाभारत युद्ध का जिम्मेवार समझते रहे जबकि सच्चाई यही है कि भगवन श्री कृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश देकर धृतराष्ट्र के माध्यम से महाभारत को रोकने का अंतिम प्रयास किया था, लेकिन धृतराष्ट्र ने इस बात को न समझ कर तो यह भूल की ही, आज दुनिया के बहुत से लोग भी यही समझ कर भूल कर रहें हैं कि भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को श्रीमद्भगवद्गीता के माध्यम से महाभारत के युद्ध के लिए उकसाया था, जबकि भगवान श्री कृष्ण यह भी जानते थे की महाभारत का युद्ध होकर रहेगा और एक नए युग की शुरुआत भी होगी। वो तब भी और आज भी यही चाहते हैं कि संसार के लोग धृतराष्ट्र की तरह अज्ञानी बन कर अपना जीवन नष्ट न करें। श्रीमद्भगवद्गीता के माध्यम से भगवान श्री कृष्ण ने बताया है की प्रत्येक सांसारिक मनुष्य अपने अपने कर्मों से बंधा हुआ है ,अच्छे या बुरे प्रत्येक कर्म का फल मिलके रहता है उसे रोकने की ताकत भगवान के पास भी नहीं है , भगवान श्री कृष्ण अपना सब कुछ जुए में हार चुके पांडवों का सहारा बने थे ,उसी प्रकार इन्होने कलयुग में श्रीमद्भगवद्गीता के ज्ञान से युक्त बर्बरीक के सिर यानि खाटू बाले श्याम बाबा के रूप में प्रगट होकर कलयुग के हारों का सहारा बन कर एक तरह से उन्हें भी श्रीमद्भगवद्गीता के आशीर्वाद को पाने का सन्देश दिया है। श्रीमद्भगवद्गीता के अलावा उत्तर गीता महाभारत का ही एक अंश माना जाता है। जानकारी मिलती है कि पाण्डवों की विजय और राज्य प्राप्ति के बाद श्री कृष्ण के सत्संग का सुअवसर पाकर एक बार अर्जुन ने कहा कि भगवन! युद्धारम्भ में आपने जो गीता-उपदेश मुझको दिया था, युद्ध की मार-काट और भाग-दौड़ के बीच मैं भूल गया हूँ। कृपा कर वह ज्ञानोपदेश मुझको फिर से सुना दीजिए। श्री कृष्ण बोले की अर्जुन, उक्त उपदेश मैंने बहुत ही समाहितचित्त (योगस्थ) होकर दिव्य अनुभूति के द्वारा दिया था, अब तो मैं भी उसको आनुपूर्वी रूप से भूल गया हूँ। फिर भी यथास्मृति उसे सुनाता हूँ। इस प्रकार श्री कृष्ण का बाद में अर्जुन को दिया गया उपदेश ही ‘उत्तर गीता’ नाम से प्रसिद्ध है। इस प्रसंग से ज्ञात होता है कि भगवान श्री कृष्ण को आभास था कि अर्जुन धृतराष्ट्र या संजय रुपी साधारण मनुष्य कभी भी श्रीमद्भगवद्गीता रुपी ज्ञान को खो सकते हैं। अंजनी पुत्र हनुमान को हर युग में हमेशा के लिए अजर अमर रहने का वरदान मिला हुआ है। इसी लिए भगवान श्री कृष्ण ने हनुमान जी को भी श्रीमद्भगवद्गीता का श्रोता बना कर इस ज्ञान को सदा के लिए सुरक्षित कर दिया था. ईस्ट इंडिया कंपनी ने भी श्रीमद्भगवद्गीता के महत्व को स्वीकारते हुए इसके पहले अंग्रेजी संस्करण का अनुवाद लंदन [इंग्लैंड] में चार्ल्स विल्किंस से 1785 में करवाया था..क्योंकि श्रीमद्भगवद्गीता मात्र पुस्तक ही नहीं है बल्कि भगवान श्री कृष्ण जी का आशीर्वाद है श्रीमद्भगवद्गीता जहां भी जाती है भगवान श्री कृष्ण जी का आशीर्वाद भी साथ जाता है ,श्रीमद्भगवद्गीता में भाषा से ज्यादा भगवान के प्रति आपके भाव का महत्व है महाभारत के युद्ध से संबद्धित भगवान श्री कृष्ण द्वारा अर्जुन को गीतापदेश देते समय वाली तस्वीर या पूरी महाभारत में से सिर्फ श्रीमद्भगवद्गीता ही घर में रखने का नियम है [दीपक गर्ग, जिला मीडिया कन्वीनर, भाजपा, फरीदकोट ]