ग्वालियर १९ जुलाई ( द्धारका हुकवानी ) द्वारका व्यापम घोटाले की जांच सीबीआई किस वर्ष की षिकायतों से शुरू करेगी, इसके कयास लगाये जाने लगे हैं। घोटाले की जांच से जुड़े लोगों का कहना हैं कि घोटाला 1995 से ही शुरू हो गया था दस्तावेजी सबूत न मिलने से एसआईटी जांच नहीं कर सकी। वर्ष 2005 के बाद फर्जीवाड़ा करने वाले ही पुलिस की जद में आ पाये थे। आरटीआई एक्टिविस्ट आषीष चतुर्वेदी का दावा है कि अगर व्यापम द्वारा आयोजित परीक्षाओं में फर्जीवाड़े की जांच वर्ष 1995 से की जाये तो इसमें 10 हजार आरोपी और बनेंगे। जानकारों का कहना हैं कि 2006 से 2013 तक हुये घोटालों की जांच के दौरान पुराने फर्जीवाड़े के तथ्य सामने आये तो सीबीआई व्यापम घोटाले का इतिहास भी खंगाल सकती है। यह खेल वर्ष 1998 से चल रहा था, इस संबंध में एसआईटी को सुराग भी मिले थे, इससे पहले पीएमटी सहित व्यापम द्वारा आयोजित की जाने वाली परीक्षाओं के पेपर आउट कराने वाला रैकिट सक्रिय था, पकड़े गये लोगों ने एसआईटी को बताया कि फर्जीवाड़ा 2000 से पहले शुरू हो चुका था। डाॅ0 जगदीष सागर गोहद तथा चांद खां अन्य कई लोग समय-समय पर पकड़े गये।
दूसरी परीक्षाओं में भी हुआ फर्जीवाड़ा – व्यापम द्वारा आयोजित सव इंस्पेक्टर, सिपाही वन रक्षक जैसी परीक्षाओं में वर्ष 1997 से साॅल्वर बैठाये जाने और पेपर आउट कराये जाने की बात एसआईटी की जांच के दौरान प्रकाष में आई थी, लेकिन इसमें जांच वर्ष 2009 के बाद ही की गई थी। परिवहन तथा पुलिस भर्ती की जांच भी सीबीआई द्वारा किये जाने की बात चर्चा में हैं, उधर आषीष चतुर्वेदी आरटीआई एक्टिविस्ट ने कहा है कि कई बड़े नामों का खुलासा 1995 से हुये घोटालों की जांच से हो सकता है। उन्होंने इस संबंध में कहा कि एसआईटी को दस्तावेज दे चुका हूँ। रतलाम के तत्कालीन विधायक पारस सकलेचा ने वर्ष 2000 में फर्जी तरीके से मेडीकल काॅलेज में प्रवेष लेने का मामला विधानसभा में उठाया था तब चिकित्सा षिक्षा विभाग द्वारा बनाई गई जांच कमेटी ने करीब 2 वर्ष के 27 अक्टूबर 2011 में अपनी रिपोर्ट पेष की, उसके 1 साल बाद जीआरएमसी काॅलेज प्रषासन एफआईआर करा पाया। सीबीआई इसके अलावा नामचीन लोगों के पुत्रों, परिजनों, रिष्तेदारों एवं अन्य के प्रायवेट काॅलेजों में हुये एडमिषन एवं अन्य बिन्दुओं, लेन-देन व पद के दुरूपयोग पर भी जांच कर सकती है।
ग्वालियर १९ जुलाई ( द्धारका हुकवानी ) द्वारका व्यापम घोटाले की जांच सीबीआई किस वर्ष की षिकायतों से शुरू करेगी, इसके कयास लगाये जाने लगे हैं। घोटाले की जांच से जुड़े लोगों का कहना हैं कि घोटाला 1995 से ही शुरू हो गया था दस्तावेजी सबूत न मिलने से एसआईटी जांच नहीं कर सकी। वर्ष 2005 के बाद फर्जीवाड़ा करने वाले ही पुलिस की जद में आ पाये थे। आरटीआई एक्टिविस्ट आषीष चतुर्वेदी का दावा है कि अगर व्यापम द्वारा आयोजित परीक्षाओं में फर्जीवाड़े की जांच वर्ष 1995 से की जाये तो इसमें 10 हजार आरोपी और बनेंगे। जानकारों का कहना हैं कि 2006 से 2013 तक हुये घोटालों की जांच के दौरान पुराने फर्जीवाड़े के तथ्य सामने आये तो सीबीआई व्यापम घोटाले का इतिहास भी खंगाल सकती है। यह खेल वर्ष 1998 से चल रहा था, इस संबंध में एसआईटी को सुराग भी मिले थे, इससे पहले पीएमटी सहित व्यापम द्वारा आयोजित की जाने वाली परीक्षाओं के पेपर आउट कराने वाला रैकिट सक्रिय था, पकड़े गये लोगों ने एसआईटी को बताया कि फर्जीवाड़ा 2000 से पहले शुरू हो चुका था। डाॅ0 जगदीष सागर गोहद तथा चांद खां अन्य कई लोग समय-समय पर पकड़े गये।
दूसरी परीक्षाओं में भी हुआ फर्जीवाड़ा – व्यापम द्वारा आयोजित सव इंस्पेक्टर, सिपाही वन रक्षक जैसी परीक्षाओं में वर्ष 1997 से साॅल्वर बैठाये जाने और पेपर आउट कराये जाने की बात एसआईटी की जांच के दौरान प्रकाष में आई थी, लेकिन इसमें जांच वर्ष 2009 के बाद ही की गई थी। परिवहन तथा पुलिस भर्ती की जांच भी सीबीआई द्वारा किये जाने की बात चर्चा में हैं, उधर आषीष चतुर्वेदी आरटीआई एक्टिविस्ट ने कहा है कि कई बड़े नामों का खुलासा 1995 से हुये घोटालों की जांच से हो सकता है। उन्होंने इस संबंध में कहा कि एसआईटी को दस्तावेज दे चुका हूँ। रतलाम के तत्कालीन विधायक पारस सकलेचा ने वर्ष 2000 में फर्जी तरीके से मेडीकल काॅलेज में प्रवेष लेने का मामला विधानसभा में उठाया था तब चिकित्सा षिक्षा विभाग द्वारा बनाई गई जांच कमेटी ने करीब 2 वर्ष के 27 अक्टूबर 2011 में अपनी रिपोर्ट पेष की, उसके 1 साल बाद जीआरएमसी काॅलेज प्रषासन एफआईआर करा पाया। सीबीआई इसके अलावा नामचीन लोगों के पुत्रों, परिजनों, रिष्तेदारों एवं अन्य के प्रायवेट काॅलेजों में हुये एडमिषन एवं अन्य बिन्दुओं, लेन-देन व पद के दुरूपयोग पर भी जांच कर सकती है।