10 करोड में आपदा की डा्क्यूमेंट्री फिल्म बनाने का करार

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Posted By Sagar Chanana


देहरादून।*उत्तराखण्ड क्रांति दल ने केदारनाथ आपदा पीडतों के लिए आई राहत राशि को फिजूलखर्ची* करने का राज्य सरकार पर आरोप लगाया है और कहा है कि सरकार अपनी नाकामयाबी छिपाने के लिए विश्व बैंक से आये पैसों को पानी की तरह बहा रही है जो कि आपदा पीडत के साथ सरकार का एक भद्दा मजाक है।
** दल के मीडिया प्रभारी मनमोहन लखेडा ने प्रेस को जारी एक बयान में कहा कि* जनू २०१३ को केदारनाथ में आई भीषण प्राकृतिक आपदा में उत्तराखण्ड के लोगों ने जो त्रासदी झेली है उसे शायद ही कभी कोई भुला पायेगा। लेकिन आपदा के बाद राहत कार्यों में किस तरह धांधली बरती गई, उसका खुलासा सूचना अधिकार के जरिये हो रहा है। लखेडा ने कहा कुछ महीने पहले ही आपदा राहत घोटाला सामने आया कि किस तरह सरकार ने दो का चार बताकर राहत के पैसे की लूट खसूट की है। अभी शराब नीति मामले को लेकर मुख्यमंत्री के ओएसडी मोहम्मद शाहिद के स्टिंग ऑपरेषन में यह बात साफ हो ही गई है, सरकार के कामकाज में पारदर्शिता कतई नहीं बरती जा रही है। यह बात सच है कि बिना आग के धुंआ नहीं आता। सरकार बचाव के लिए जो भी कहे उससे सच झूठ में तब्दील नहीं हो जाता। आपदा राहत का एक और घोटाला आरटीआई में सामने आया है।
******* *लखेडा ने कहा कि आरटीआई से मिली सूचना में सरकारी पैसे के दुरुपयोग का मामला सामने आया है। राज्य सरकार ने आपदा प्रभावितों को ठेंगा दिखाते हुए अप्रैल २०१५ में एक और घोटाला कर डाला। रावत सरकार ने कैलाशा इंटप्राइजेज प्राईवेट लिमिटेड को केदारनाथ आपदा राहत कार्यों को प्रदर्शित करने के लिए ४४ मिनट की एक ड्क्यूमेंट्री (जिसमें कुल १२ एपिसोड होने बताया गया) बनाने का करार किया है। एक एपिसोड की लागत ७९,००,०००=०० लाख रुपये है, और इस पर १२.३६ प्रतिशत यानि ९७६,४४०=०० लाख रुपये सर्विस टैक्स अलग से जोडा गया है। कुल मिलाकर एक एपिसोड की लागत ८८,७६,४४०=०० (अठ्ठासी लाख छियत्तर हजार चार सौ चालिस रुपये)। इसी तरह १२ एपिसोड्स पर १०,६५,१७,२८०=०० करोड रुपये होंगे। सवाल यह है कि इस डॉक्यूमेंट्री से आम जनता को क्या लाभ होने वाला है। इसे फिजूल खर्ची और सरकारी धन की बरबादी नहीं तो और क्या कहें? सरकार अपना चेहरा चमकाने और अपनी नाकामियों पर पर्दा डालने के लिए विश्व बैंक के पैसे को पानी की तरह बहा रही है, बेहतर होता कि आपदा में अपना सब कुछ खो चुके लोगों के लिए इस पैसे से कुछ करती। इतनी बडी रकम महज एक डॉक्युमेंट्री पर लुटाने का क्या औचित्य है सरकार इसका जवाब दे। आपदा पीडत आज भी दर-दर भटकने को मजबूर है। यात्रा मार्गों की हालत खस्ती है। लोगों को बिजली, पानी और स्वास्थ्य सुविधाएं नहीं मिल पा रही है। षिक्षा और रोजगार के हालात भी बेहद खराब है। लोग किसी तरह दो वक्त की रोटी कमाने के लिए मोहताज हैं और सरकार डाक्यूमेंट्री पर करोडों रुपये लुटा रही है। यह आपदा पीडतों के साथ मजाक नही ंतो और क्या है। इससे जनता को क्या संदेष देना चाहती है कि सब ठीक है। सीएम साहब डाक्यूमेंट्री से गरीब का पेट नहीं भरता। उसे तो काम चाहिए, जिसको देने के लिए आफ स्तर से कोई प्रयास नहीं किए जा रहे हैं। दूसरा यह कि इससे पहले सरकार ने मीडिया के माध्यम से आपदा राहत कार्यों का प्रचार-प्रसार करके जो दावे किए थे, उन पर भरोसा कर लोगों ने उत्तराखण्ड का रुख किया था, यहां पहुंचकर जब वे सच्चाई से रुबरू हुए तो उससे वे निराशा भी हुए। यात्रा मार्गों पर तमाम अव्यवस्थाओं और खराब पडी सडकों ने सरकार के कामकाज की ही पोल नहीं खोली बल्कि देश-विदेश में गलत संदेश गया है। इसकी भरपाई सरकार कैसे करेगी, इसका भी हरीश सरकार जवाब दे।