ग्वालियर। २ सितम्बर[सी एन आई ]जिला सहकारी केन्द्रीय बैंक मर्यादित लगभग 283 करोड़ के घाटे में है। इसके अलावा करीब 83 करोड़ रूपए की ऋण बसूली अटकी हुई है। इस बसूली को बैंक की चीनोर शाखा से करने में रिकाॅर्ड नहीं मिल रहा है। बैंक की इस शाखा में सदस्यों को बांटे गए लोन की राषि लगभग 36 करोड़ रूपए है, जबकि बैंक के खाते में लोन की बसूली 47 करोड़ और दर्ज है। इस राषि का अंतर पता करने के लिए अधिकारी मषक्कत तो कर रहे हैं, लेकिन किसानों के नाम से जारी हुए बाॅड ही शंकाओं के घेरे में होने से पूरी ऋण प्रक्रिया पर सवाल खड़ा हो गया है। बता दें कि चीनोर की एक और सोसायटी पर पूर्व में 5 करोड़ रूपए के फर्जी बाॅड बनाकर किसानों को धोखा दिये जाने का मामला सामने आ चुका है।
इनके समय हुईं गड़बडि़यां – तत्कालीन मुख्य कार्यपालन अधिकारी पंकज गुप्ता, एमके ढिमोले और सीईओ की अनुपस्थिति में प्रभारी रहे जीजी अग्रवाल पर दायित्व रहा है। इन अधिकारियों के पदस्थ रहने के समय ऋण माफी ऋण वितरण सहित अन्य घोटाले सामने आये हैं, जबकि चीनोर शाखा और समिति पर मुकेष माथुर और समिति प्रबंधक और सुपरवायजर कालीचरन गौतम के कार्यकाल में आर्थिक अनियमितताएं सबसे ज्यादा हुई हैं।
जांच न होने का परिणाम – 2010 में सहकारी बैंक के माध्यम से हुई ऋण माफी की जांच सहकारिता सतर्कता सैल से कराने के लिये विभागीय कर्मचारी सतीष शर्मा ने षिकायत की थी। सतर्कता सैल चीनोर शाखा की संस्थाओं में जांच के लिये 10 सदस्यीय दल बनाया था। तत्कालीन डीआर आरके वाजपेयी के नेतृत्व में बने इस दल ने शुरूआती जांच की थी। इसमें 9 करोड़ का फर्जी ऋण सामने आ गया था, इसके अलावा राजनैतिक दबाव में जांच अटक गई।
ऐसे समझें गड़बड़ी को – बैंक ने चीनोर शाखा से संबंध चीनोर, उर्वा, पिपरौआ, घरसोंदी, छीमक, ईंटमा, दुबहा, भैंगना और मेहगांव समितियों को राषि दी थी। यह राषि कृषक सदस्यों को बांटी गई, इसके बाद 30 जून 2015 को जब ऋण बसूली का नोटिस जारी हुआ तो पता चला कि बैंक द्वारा दी गई राषि और समितियों पर दर्ज राषि में 47 करोड़ रूपये का अंतर है। गड़बड़ी पकड़ में तब आई, जब यह पता चला कि बैंक को सोसायटियों से लेना ज्यादा हैं, जबकि कृषक सदस्यों पर लोन कम हैं। बीच की यह राषि कहां गई, यह पता लगाने में बैंक अभी तक अक्षम सिद्ध हुई है। इसकी उच्च स्तरीय जांच की मांग भी उठने लगी है। कुछ राज नेताओं की संलिप्तता भी बताई जाती है।
जांच कर रहे हैं कार्यवाही होगी -ग्वालियर कलेक्टर संजय गोयल ने पत्रकारों से कहा सहकारी बैंक हो या संस्थाएं हम इनके सभी दस्तावेजों की जांच करवा रहे हैं, इसकी रिपोर्ट का इंतजार कीजिये कार्यवाही होगी। जहां तक गवन और आर्थिक अनियमितताओं का सवाल है तो किसी भी गड़बड़ी करने वाले को छोंड़ेगे नहीं
ग्वालियर। २ सितम्बर[सी एन आई ]जिला सहकारी केन्द्रीय बैंक मर्यादित लगभग 283 करोड़ के घाटे में है। इसके अलावा करीब 83 करोड़ रूपए की ऋण बसूली अटकी हुई है। इस बसूली को बैंक की चीनोर शाखा से करने में रिकाॅर्ड नहीं मिल रहा है। बैंक की इस शाखा में सदस्यों को बांटे गए लोन की राषि लगभग 36 करोड़ रूपए है, जबकि बैंक के खाते में लोन की बसूली 47 करोड़ और दर्ज है। इस राषि का अंतर पता करने के लिए अधिकारी मषक्कत तो कर रहे हैं, लेकिन किसानों के नाम से जारी हुए बाॅड ही शंकाओं के घेरे में होने से पूरी ऋण प्रक्रिया पर सवाल खड़ा हो गया है। बता दें कि चीनोर की एक और सोसायटी पर पूर्व में 5 करोड़ रूपए के फर्जी बाॅड बनाकर किसानों को धोखा दिये जाने का मामला सामने आ चुका है।
इनके समय हुईं गड़बडि़यां – तत्कालीन मुख्य कार्यपालन अधिकारी पंकज गुप्ता, एमके ढिमोले और सीईओ की अनुपस्थिति में प्रभारी रहे जीजी अग्रवाल पर दायित्व रहा है। इन अधिकारियों के पदस्थ रहने के समय ऋण माफी ऋण वितरण सहित अन्य घोटाले सामने आये हैं, जबकि चीनोर शाखा और समिति पर मुकेष माथुर और समिति प्रबंधक और सुपरवायजर कालीचरन गौतम के कार्यकाल में आर्थिक अनियमितताएं सबसे ज्यादा हुई हैं।
जांच न होने का परिणाम – 2010 में सहकारी बैंक के माध्यम से हुई ऋण माफी की जांच सहकारिता सतर्कता सैल से कराने के लिये विभागीय कर्मचारी सतीष शर्मा ने षिकायत की थी। सतर्कता सैल चीनोर शाखा की संस्थाओं में जांच के लिये 10 सदस्यीय दल बनाया था। तत्कालीन डीआर आरके वाजपेयी के नेतृत्व में बने इस दल ने शुरूआती जांच की थी। इसमें 9 करोड़ का फर्जी ऋण सामने आ गया था, इसके अलावा राजनैतिक दबाव में जांच अटक गई।
ऐसे समझें गड़बड़ी को – बैंक ने चीनोर शाखा से संबंध चीनोर, उर्वा, पिपरौआ, घरसोंदी, छीमक, ईंटमा, दुबहा, भैंगना और मेहगांव समितियों को राषि दी थी। यह राषि कृषक सदस्यों को बांटी गई, इसके बाद 30 जून 2015 को जब ऋण बसूली का नोटिस जारी हुआ तो पता चला कि बैंक द्वारा दी गई राषि और समितियों पर दर्ज राषि में 47 करोड़ रूपये का अंतर है। गड़बड़ी पकड़ में तब आई, जब यह पता चला कि बैंक को सोसायटियों से लेना ज्यादा हैं, जबकि कृषक सदस्यों पर लोन कम हैं। बीच की यह राषि कहां गई, यह पता लगाने में बैंक अभी तक अक्षम सिद्ध हुई है। इसकी उच्च स्तरीय जांच की मांग भी उठने लगी है। कुछ राज नेताओं की संलिप्तता भी बताई जाती है।
जांच कर रहे हैं कार्यवाही होगी -ग्वालियर कलेक्टर संजय गोयल ने पत्रकारों से कहा सहकारी बैंक हो या संस्थाएं हम इनके सभी दस्तावेजों की जांच करवा रहे हैं, इसकी रिपोर्ट का इंतजार कीजिये कार्यवाही होगी। जहां तक गवन और आर्थिक अनियमितताओं का सवाल है तो किसी भी गड़बड़ी करने वाले को छोंड़ेगे नहीं