यूपी के पंचायत चुनाव- लोकतंत्र का भद्दा मज़ाक

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उतर प्रदेश 3 दिसम्बर ( सुरजीत सिंह) उत्तर प्रदेश में पंचायतो का हाल बहुत बुरा है| अवैध कमाई और थाने की दलाली के चंगुल में फस कर रह गयी है देश की सबसे छोटी संसद| कुछ अपवादों को छोड़ दे तो लगभग पूरी यूपी का हाल लगभग एक जैसा ही है| गाँव की जमीदारी आरक्षण के कोहरे से छटी जरूर मगर अड्ड़ा अराजकता का बन गया| वर्ष 2015 के पंचायतो के चुनावो में अब आम जनता का मानना है कि ये चुनाव सत्ता के इशारे पर अपने कार्यकर्ताओ को बिठाने के लिए हो रहे है| चुनावो के शुरू होने से पहले जिलो में सत्ताधारी नेताओ के हुक्मबाज अफसरों की तैनाती से लेकर प्रमाण पत्र वितरण तक नियम, संयम और कानून ताक पर है| अब तो जनता कहने लगी है कि “गारंटी नही है कि आखिरी राउंड तक चुनाव जीतने वाला प्रधानी का प्रमाण पत्र पा जाए”| ऐसी अविश्सनीयता जब जब जनता के दिल में घर करती है सत्ताएं पलटती है|विकास के नाम का लबादा ओढ़े चुनाव लड़ रहा प्रधान पद का प्रत्याशी लाखो रुपये खर्च कर प्रधान बनना चाहता है| कुछ शान के लिए तो कुछ माल कमाने के लिए| गाँव में जुए में पकडे गए जुम्मन के लड़के को प्रधान ने थानेदार से पैरवी करके 20 हजार में छुड़वा दिया, शाम को प्रधान जी थाने में चाय के साथ 10 हजार अपना कमीशन ले आये| जुम्मन और उसका लड़का भी खुश और प्रधान की भी बोहनी हो गयी| ग्राम पंचायत की जमीन का पट्टा करना हो,किसी ग्रामीण को पेंशन मिलनी हो, इंदिरा आवास, लोहिआ आवास आवंटन हो, प्रधान जी का कमीशन है| कुछ बड़े ही बेशर्म होते है पारिवारिक लाभ (परिवार के मुखिया की आकस्मिक मृत्यु पर मिलने वाली सरकारी इमदाद) की चेको में भी कमीशन खा जाते है| कुल मिलाकर प्रधान सब कुछ खाने लगा है| ग्रामीण सामाजिक सांस्कृतिक छवि अब किताबो तक ही है|केंद्र और राज्य सरकार का ग्रामीण विकास के लिए आने वाला धन ग्राम पंचायत के खातों से आहरित होता है| जिला मुख्यालय से ये पैसा ग्राम पंचायतो के खातों में तब पहुचता है जब जिला पंचायती राज अधिकारी ग्राम पंचायतो के सचिवो और प्रधानो से अग्रिम कमीशन वसूल अपना हिस्सा काटते हुए जिला विकास अधिकारी तक पंहुचा देता है| बड़ा मकड़जाल जैसा है ये पंचायती राज| दरअसल में सत्ता के विकेंद्रीकरण को लक्ष्य रखते हुए पंचायती राज कानून बनाया गया था मगर असल में ये भ्रष्टाचार के विकेंद्रीकरण जैसा साबित हुआ| इन दिनों उसी की बुनियाद खोदी जा रही है| गाँव गाँव शराब बट रही है| चुनाव कराने के लिए मतदान कर्मी स्कूल के अंदर पहुंच चुके है मगर प्रधान पद के प्रत्याशी को नींद कहाँ| आखिरी दांव तक चाले चलना और उस पर निगरानी जरुरी है| वोट डालने से लेकर वोटो की गिनती तक अविश्सनीयता से घिरा हुआ है पंचायत का चुनाव लड़ने वाला|कुछ दिनों पहले ही जिला पंचायत सदस्य के लिए हुए चुनावो में वोटो की गिनती की तस्वीर उसके सामने है| आखरी राउंड तक जीता कोई और था और प्रमाण पत्र मिला किसी और को|आयोग ने फरमान भेजा था कि जिला पंचायत सदस्य के प्रमाण पत्र उप जिला निर्वाचनअधिकारी स्तर से ऊपर के अफसर प्रमाण पत्र बाटेंगे| मगर कई को तो चपरासियों के हाथो ये सौभाग्यशाली करोड़पति बनाने वाला जिला पंचायत सदस्य का प्रमाण पत्रमिला| क्या आयोग और क्या जिला निर्वाचन अधिकारी| सब की बस एक ही चिंता है| चुनाव शांतिपूर्वक निपट जाए| तभी खबरोंकी हेडिंग बनती है- “दूसरे चरण में खूब हुआ शांतिपूर्वक फर्जी मतदान और बूथ कैप्चरिंग”| प्रधानी के चुनाव में पीठासीन अधिकारी में स्वयं या अफसरों के कहने पर (जिम्मेदारी कोई नहीं लेगा) बूथ कैप्चरिंग के लिए राह आसान कर दी है| मतदान शुरू होने से पहले ही हर बैलेट पेपर पर मुहर और हस्ताक्षर पहले ही कर दिए है| ताकि बूथ कैप्चरिंग करते समय गुंडों को कोई परेशानी न हो और गिनती के समय असली नकली की पहचान छुपी रहे| कोई गारंटी नहीं कि इसके लिए मतदानकर्मी न बिका हो| और फिर इतनी बात का हंगामा ही क्यों हो जब जिला पंचायत सदस्य के चुनावो में बिना हस्ताक्षर मुहर के निकले वोट मनचाहे या सरकार की पसंद के प्रत्याशी को जिताने के काम अफसर के काम आये हो| कुल मिलाकर उत्तर प्रदेश में पंचायत चुनाव के नाम पर एक तरह से मजाक सा हो रहा है|गुंडई, दबंगई सत्ता पक्ष के लिए जायज हैऔर विपक्ष के लिए नाजायज| इसका तकाजा पंचायत चुनावो में साफ़ तौर पर नजर आता है| लखनऊ की सरकार अधिक से अधिक जिला पंचायत और ब्लाक प्रमुख का चुनाव अपनी पार्टी को जिताना चाहती है| मतलब सिर्फ जीत से है| इसके तरीके की जिम्मेदारी अफसरों की होगी| वैसे भी यूपी में राजनीती की शुरुआत पंचायतघर की जगह थाने से होती है| विरोधियो पर दबाब, हड़काने, पकड़ करना, धमकाना और प्रमाण पत्र खरीद लेने जैसे हथकंडे चलते है| एकएक जिला पंचायत कई कई करोड़ वैध रूप से रिश्वतीकरण के माध्यम से खर्च करने के बाद गठित होती है| जिले और गाँव के प्रथम नागरिक का राज्याभिषेक भ्रष्टाचार की सीढ़ी पर चलने के बाद ही होता है यूपी में| मौसम चुनावी है| कुछ आप भी लुफ्त उठाइये| अगर यूपी से बाहर के है तो नशीली, शराबी और हलकी गुलाबी सर्दी में कुछ दिन गुजारिये यहाँ| जरा देखिये तो सही कि कैसे लोकतंत्र का मजाक उड़ रहा है यूपी में| और उसे उड़ाने वालो के साथ कैसे कन्धा दे रही है देश की सर्वोच्च गौरवशाली नेताभक्त आईएएस और आईपीएस की जमात|और चलते चलते-पंचायत चुनावो में चुनावी खर्च बेहिसाब है| जितनी आयोग ने सीमा निर्धारित की है उतने में तो एक दिन की दारु उड़ रही है| फर्जी वोटो के बढ़ाने और असली कटवाने में लाखो रुपये फूके जा चुकें है| पीठासीन अधिकारी से लेकर मतदान कर्मी की जेबे भी गर्म करायी जाती है| दो चार सौ तो मतदान केंद्र की -जेड श्रेणी ड्यूटी में तैनात होमगार्डको भी बक्शीश मिल जाती है| एक तरह से नोटों की वारिश में गुलजार हो रहा है प्रधानी का चुनाव| साहूकार और जमीन खरीदने वाले पैसा बाट रहे है| हर लड़ने वाले के समीकरण उसके पक्ष में उसे दिखाई पड़ रहे है| ये मुंगेरी सपने 13 दिसम्बर यानि वोटो की गिनती तक बरक़रार रहेंगे| पूरे उत्तर प्रदेश में प्राइमरी के मास्टरों के सबसे ज्यादा परिजन चुनावी मैदान में है| पंचायत सचिवो से लेकर लेखपालो और प्रेरको तक ने वोट बढ़ाने घटाने से लेकर अदेय प्रमाण पत्र जारी करने में खूब माल बनाया है| सरकारी मशीनरी सिर्फ शांति चाहती है| मुसीबत सिर्फ शांति की है|