ग्वालियर। 8नवम्बर[ सीएनआई ]आर्थिक हालात सुधरने के बड़े-बड़े दावे किये जाते हैं, लेकिन इन दावों में कितनी सच्चाई है, यह कमलाराजा अस्पताल केएएच में देखने को मिला। षिवपुरी की रहने वाली गुड्डी के 10 वर्षीय बेटे षिवा की बालरोग में इलाज के दौरान मृत्यु हो जाने पर गुड्डी के पास इतने पैसे नहीं थे कि वह उसका शव गांव ले जाकर अंतिम संस्कार कर सके। बेटे के शव के पास रोती-बिलखती मां को देख अन्य मरीजों के परिजनों ने उसकी आर्थिक सहायता की। और बाद में जेएएच अधीक्षक डॉ0 जेएस सिकरवार को पता लगने पर एक हजार रूपये की आर्थिक सहायत दिलवाई। मुरैना के जुवेरूद्धीन तथा ऑन लाइन सर्विस के रमेष कुषवाह ने महिला की काफी मदद की। महिला का बेटे के शव के पास रो-रोकर बुरा हाल था, गुड्डी वंषकार मजदूरी कर आजीविका चलाती है। एक सप्ताह पहले खनियाधाना में तबीयत खराब होने पर इलाज कराया वहां से षिवपुरी जिला अस्पताल रेफर किया, जहां से फिर ग्वालियर रेफर किया गया, खून की कमीं के चलते बाल रोग विभाग ने इलाज के दौरान षिवा ने दम तोड़ दिया। डॉ0 जेएस सिकरवार ने बताया कि पहले रेडक्रॉस के माध्यम से जिला प्रषासन द्वारा शवों को भेजने की व्यवस्था थी, लेकिन अब वह बंद कर दी गई है, जिससे गरीब मरीज परेषान होते हैं।
ग्वालियर। 8नवम्बर[ सीएनआई ]आर्थिक हालात सुधरने के बड़े-बड़े दावे किये जाते हैं, लेकिन इन दावों में कितनी सच्चाई है, यह कमलाराजा अस्पताल केएएच में देखने को मिला। षिवपुरी की रहने वाली गुड्डी के 10 वर्षीय बेटे षिवा की बालरोग में इलाज के दौरान मृत्यु हो जाने पर गुड्डी के पास इतने पैसे नहीं थे कि वह उसका शव गांव ले जाकर अंतिम संस्कार कर सके। बेटे के शव के पास रोती-बिलखती मां को देख अन्य मरीजों के परिजनों ने उसकी आर्थिक सहायता की। और बाद में जेएएच अधीक्षक डॉ0 जेएस सिकरवार को पता लगने पर एक हजार रूपये की आर्थिक सहायत दिलवाई। मुरैना के जुवेरूद्धीन तथा ऑन लाइन सर्विस के रमेष कुषवाह ने महिला की काफी मदद की। महिला का बेटे के शव के पास रो-रोकर बुरा हाल था, गुड्डी वंषकार मजदूरी कर आजीविका चलाती है। एक सप्ताह पहले खनियाधाना में तबीयत खराब होने पर इलाज कराया वहां से षिवपुरी जिला अस्पताल रेफर किया, जहां से फिर ग्वालियर रेफर किया गया, खून की कमीं के चलते बाल रोग विभाग ने इलाज के दौरान षिवा ने दम तोड़ दिया। डॉ0 जेएस सिकरवार ने बताया कि पहले रेडक्रॉस के माध्यम से जिला प्रषासन द्वारा शवों को भेजने की व्यवस्था थी, लेकिन अब वह बंद कर दी गई है, जिससे गरीब मरीज परेषान होते हैं।