ग्वालियर।३०सितम्बर [सीएनआई नजूल विभाग और नगर निगम अफसरों की लापरवाही से बिना किसी प्लानिंग से फोरलेन सड़कों का प्रस्ताव बना दिया गया। जहां सड़क बनना हैं, वहां क्षेत्रीय लोगों के मकान और जमींन हैं, ऐसे में घबराये क्षेत्रीय निवासी निगम के खिलाफ कोर्ट से परमानेंट स्टे ले आये, इस कारण 5 सड़कों का निर्माण पिछले 3 सालों से लटका है। अधिकारियों की मनमानी के चलते लोगों के मकान तोड़ने की प्लानिंग चल रही थी, चंूकि अधिकारी कुछ समय के लिये आकर चले जाते हैं, लेकिन जिनके मकान दुकान टूटते हैं, वो हमेषा के लिये बर्बाद हो जाते हैं। मुख्यमंत्री कई बार इस बात को कह चुके हैं, लेकिन अधिकारी टेबिल पर बैठकर बिना सोचे-समझे लोगों के मकान तुड़वाने में इंट्रेसस्टेड रहते हैं। 2011 में भी तत्कालीन जिला अधिकारी एवं नगर निगम ने ग्वालियर में 10 हजार मकानों को तोड़कर पूरा शहर अस्त-व्यस्त कर दिया था। सरकारी जमींन पर अतिक्रमण हटना चाहिये, परंतु अतिक्रमण एकाएक बताकर बिना हाईकोर्ट के निर्देष पूरे किये। 40-50 साल पुराने मकान तोड़ना कहां का न्याय हैं, यदि मकान गलत भी बने हैं तो उन अधिकारियों को जेल भेजा जाना चाहिये, जिन्होंने गलत बनने दिये। उनके खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं होती, गरीब और मध्यम वर्ग लोगों के मकान बुल्डोजर से तोड़ दिये जाते हैं, इससे शासन के प्रति भी नाराजगी लोगों में पैंदा होती है, अपराध बढ़ते हैं। एक ओर मुख्यमंत्री कहते हैं कि मकान नहीं तोड़े जायेंगे। वहीं अधिकारी ऐसी जगहों पर से ही सड़कें निकालने की बात करते हैं, प्लानिंग न होने से रूकावटें आती हैं, बिवाद होते हैं और विकास रूक जाता है।
ग्वालियर।३०सितम्बर [सीएनआई नजूल विभाग और नगर निगम अफसरों की लापरवाही से बिना किसी प्लानिंग से फोरलेन सड़कों का प्रस्ताव बना दिया गया। जहां सड़क बनना हैं, वहां क्षेत्रीय लोगों के मकान और जमींन हैं, ऐसे में घबराये क्षेत्रीय निवासी निगम के खिलाफ कोर्ट से परमानेंट स्टे ले आये, इस कारण 5 सड़कों का निर्माण पिछले 3 सालों से लटका है। अधिकारियों की मनमानी के चलते लोगों के मकान तोड़ने की प्लानिंग चल रही थी, चंूकि अधिकारी कुछ समय के लिये आकर चले जाते हैं, लेकिन जिनके मकान दुकान टूटते हैं, वो हमेषा के लिये बर्बाद हो जाते हैं। मुख्यमंत्री कई बार इस बात को कह चुके हैं, लेकिन अधिकारी टेबिल पर बैठकर बिना सोचे-समझे लोगों के मकान तुड़वाने में इंट्रेसस्टेड रहते हैं। 2011 में भी तत्कालीन जिला अधिकारी एवं नगर निगम ने ग्वालियर में 10 हजार मकानों को तोड़कर पूरा शहर अस्त-व्यस्त कर दिया था। सरकारी जमींन पर अतिक्रमण हटना चाहिये, परंतु अतिक्रमण एकाएक बताकर बिना हाईकोर्ट के निर्देष पूरे किये। 40-50 साल पुराने मकान तोड़ना कहां का न्याय हैं, यदि मकान गलत भी बने हैं तो उन अधिकारियों को जेल भेजा जाना चाहिये, जिन्होंने गलत बनने दिये। उनके खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं होती, गरीब और मध्यम वर्ग लोगों के मकान बुल्डोजर से तोड़ दिये जाते हैं, इससे शासन के प्रति भी नाराजगी लोगों में पैंदा होती है, अपराध बढ़ते हैं। एक ओर मुख्यमंत्री कहते हैं कि मकान नहीं तोड़े जायेंगे। वहीं अधिकारी ऐसी जगहों पर से ही सड़कें निकालने की बात करते हैं, प्लानिंग न होने से रूकावटें आती हैं, बिवाद होते हैं और विकास रूक जाता है।