कृषि विभाग की लापरवाही से बिन बटे हजारों क्विंटल दवा वापसी की तैयारी

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अशोकनगर। एक ओर जहां केन्द्र और प्रदेश की सरकार खेती को लाभ का धंधा बनाने के लिए तमाम योजनाएं संचालित कर रहीं हैं। दूसरी ओर जिले के कृषि अधिकारी इन योजनाओं को बट्टा लगाने में कोई कोर कसर नही छोड़ रहे हैं। ताजा मामला जिले में एक डेढ़ साल पहले आईं सूक्ष्म उर्वरकों की खेप से जुड़ा हुआ है। किसानों को अनुदान पर देने के लिए आई हजारों क्ंिवटल उर्वरकों का ये लाट विभाग गुपचुप तरीके से वापस करने की तैयारी कर रहा है। यही नही विभाग संबंधित कम्पनी की दवा स्टाक में रखने का किराया भाड़ा भी वहन कर रहा है।
वर्ष 2014 में जिले के चारों ब्लाक में इन्दौर की कम्पनी से आई हाईजिंक सूक्ष्म उर्वरक और सल्फर की खेप रखी हुई है। यह उर्वरक किसानों को शासन की विभिन्न योजनाओं के तहत 50 प्रतिशत अनुदान पर प्रदान किया जाना था। विभाग ने किसानों को उर्वरक के लाभ और जिले में उसकी उपलब्धता के बारे में कोई जानकारी नही दी। लिहाजा किसान अनुदान पर मिलने वाले इन उर्वरकों का प्रयोग खेतों में नही कर पाए।
फसलों की सेहत सुधारते हैं उर्वरक:
कृषि विशेषज्ञों के मुताबिक भूमि में दो तरह के पोषक तत्व पाए जाते हैं। इनमें नाईट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश मुख्य पोषक तत्व हैं। जबकि गौण तत्वों में जिंक, सल्फर आदि आते हैं। जिंक धान की फसल सहित अन्य फसलों के लिए बेहद लाभदायक है। ङ्क्षजक की कमी से धान में खैरा रोग हो जाता है। हाईजिंक 3 साल में एक बार भूमि में डाला जाता है। जबकि सामान्य जिंक प्रतिवर्ष उपयोग किया जाता है। इसी तरह सल्फर फली में दाना पडऩे के समय डाला जाता है। जिससे दाना सुडौल, चमकदार और बड़ा बन जाता है। इन सारी खूबियों से अनभिज्ञ होने के कारण किसानों ने इन दवाओं का लाभ नही ले पाया। स्टाक में रखी-रखी ये दवाएं अब इन्दौर की उसी कम्पनी को वापस की जा रहीं हैं जहां से इनको आयात किया गया था।
हजार क्विंटल से ज्यादा है वापस होने वाली दवा:
सूत्रों के मुताबिक 972 क्विंटल हाईजिंक और 182 क्ंिवटल सल्फर की वापसी तय मानी जा रही है। फिलहाल कृषि विभाग और कम्पनी के बीच पत्राचार व चलित मोबाइल के माध्यम से इस संबंध में चर्चाएं चल रहीं हैं। पूरी-पूरी संभावनाएं है कि जल्द ही दोनों पक्ष दवा वापसी पर राजी हो जाएंगे। इस तरह 1 साल तक स्टाक में रखी रहने के बाद ये दवाएं विभाग की लापरवाही के कारण अनुपयोगी साबित हुई। जबकि खुद किसान, विभाग और व्यापारी इन दवाओं को बेहद उपयोगी होने का दावा करते हैं।
दो सौ टन से अधिक है सालाना खपत:
हाईजिंक और सल्फर इन दोनों उर्वरकों की जिले में काफी मांग है। तिलहन और धान की फसलों के उत्पादन में अहम भूमिका निभाने वाले इन उर्वरकों की जिले में 200 टन से अधिक सालाना खपत का अनुमान है। जिला मुख्यालय पर स्थित कृषि उर्वरकों के थोक विक्रेता अभय सिंह के मुताबिक उनके यहां से करीब 10 टन हाईङ्क्षजंक एवं 50 टन सल्फर की बिक्री होती है। जिले में ऐसे कई और व्यापारी भी हैं। हैरत की बात यह है कि किसान व्यापारियों के यहां से महंगे उर्वरक खरीदने के लिए मजबूर है। दूसरी ओर विभाग इन दवाओं की खपत न होने का वहाना बनाकर उन्हें वापस भेजने की तैयारी में है। अगर किसानों को 50 प्रतिशत अनुदान पर उर्वरक मिलें ता वे क्यों दुगनी कीमत पर व्यापारियों से उर्वरक खरीदेंगे?
इनका कहना है:
एनएफएल स मिलने वाले उर्वरक जो प्रदर्शन के लिए आते हैं उनका वितरण नि:शुल्क किया जाता है। वहीं अनुदान पर मिलने वाले उर्वरकों को किसान नही लेते तो उनको संबंधित कम्पनी को वापस कर दिया जाता है। वैसे हाईजिंक और सल्फर वापसी के बारे में मुझे जानकारी नही है।
आरपीएस गुर्जर एसडीओ कृषि चंदेरी