फर्जी दस्तावेजों से बिल्डर को दे दी पांच करोड़ की जमींन।

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ग्वालियर। ३०अक्तुबर [सीएनआई] आनन्द नगर में करीब पांच करोड़ कीमत की ग्वालियर विकास प्राधिकरण की जमींन एक गृह निर्माण समिति द्वारा अपनी बताकर बेचने की फाइल चेयरमेंन अभय चौधरी द्वारा पुनः खोलने का निर्णय लिया है। इस हेतु उन्होंने फाइल बुलवाई है। इस मामले में प्रथम जांच में जीडीए के अधिकारी कर्मचारी फंसते नजर आ रहे हैं। राजनैतिक दबाव होने के कारण इस मामले में अधिकारियों के खिलाफ कोई कार्यवाही लम्बे समय से नहीं हो पा रही। चेयरमेंन बनने के बाद अभय चौधरी ने बताया कि मामला काफी गंभीर है। जीडीए को आर्थिक क्षति नहीं पहुंचने दूंगा। मामले की षिकायत होने पर पांच सदस्यीय जांच कमेठी गठित की गई थी, जिसमें जीडीए के सहायक वास्तुविद, लेखाधिकारी, कार्यपालन यंत्री, सम्पदा अधिकारी व अधीक्षण यंत्री शामिल थे। जांच में जब नोट शीट व आवक-जावक के रजिस्टरों व पत्रों का मिलान किया गया तो चौंकाने वाले तथ्य सामने आये। सीईओ सुरेष कुमार ने इस मामले की विस्तृत जानकारी सम्पदा अधिकारी रामनिवास सिकरवार से तलब की, लेकिन मामला फिर दब गया।
जांच रिपोर्ट के मुख्य तथ्य – 28 अप्रेल 1998 को पत्र क्रमांक 108 जारी हुआ। यह सम्पदा शाखा के बजाय स्थापना शाखा से जारी हुआ, पत्र क्रमांक 1370 दिनांक 03 अप्रेल 1998 को टाउन एण्ड कंट्री प्लानिंग के लिये जारी हुआ। जो सम्पदा शाखा के रजिस्टर में दर्ज न होकर स्थापना के रजिस्टर में दर्ज है। पत्र क्रमांक 3519 दिनांक 26 नवम्बर 2002 को सम्पदा शाखा से जारी होना बताया। लेकिन उस पर सीईओ के स्थान पर फॉर लिखकर फर्जी हस्ताक्षर किये गये, 24 अगस्त 2000 को सम्पदा शाखा पत्र क्रमांक 2877 जारी हुआ, लेकिन उस पर सीईओ ने 29 फरवरी 1999 को हस्ताक्षर किये। जांच समिति ने पाया कि कैसे संभव है कि डेढ़ साल बाद पत्र जारी किया गया। पत्र क्रमांक 859 दिनांक 30 मई 2005 को जारी होना बताया जबकि जीडीए से कोई पत्र जारी नहीं हुआ, लेकिन नोट शीट में उसका उल्लेख किया गया।
शासन ने दी 10 बीघा जमींन – शासन ने 10 बीघा जमींन आनन्द नगर योजना के लिये जिला प्रषासन की अनुषंसा पर दी थी। उसके बदले जीडीए ने शासन के खाते में 13 लाख 86 हजार जमा किये थे। इस बीच एक कॉर्लोनाइजर ने अषोक गृह निर्माण समिति के नाम से जीडीए में आवेदन देते हुये, उस जमींन को अपना बताते हुये, जमींन हथियाने का षड़यंत्र शुरू किया। 5 सदस्यीय जांच समिति ने पाया कि वर्ष 1998 में जीडीए के अधिकारियों व कर्मचारियों ने भी कॉर्लोनाइजर का साथ दिया। जीडीए अधिकारियों कर्मचारियों के हस्ताक्षर से फर्जी नोटषाीट व दस्तावेज तैयार कर कॉर्लोनाइजर को विकसित जमींन के बदले 25 फीसदी जमींन पर प्लॉट दे दिये। समिति ने उन प्लॉटों को बेचकर करोड़ों रूपए कमा लिए।fraud